Hindi shero Shayari wow NEXT LEVEL
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फलसफा समझो न असरारे सियासत समझो,
जिन्दगी सिर्फ हकीक़त है हकीक़त समझो,
जाने किस दिन हो हवायें भी नीलाम यहाँ,
आज तो साँस भी लेते हो ग़नीमत समझो।
समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई,
कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता।
जो तीर भी आता वो खाली नहीं जाता,
मायूस मेरे दिल से सवाली नहीं जाता,
काँटे ही किया करते हैं फूलों की हिफाज़त,
फूलों को बचाने कोई माली नहीं जाता।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी,
चंद सिक्कों की खातिर तूने क्या नहीं खोया है,
माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास,
पर तू ये बता कितनी रातें चैन से सोया है।
हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ,
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे,
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर,
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे।
एक चेहरा जो मेरे ख्वाब सजा देता है,
मुझ को मेरे ही ख्यालों में सदा देता है।
वो मेरा कौन है मालूम नहीं है लेकिन,
जब भी मिलता है तो पहलू में जगा देता है।
मैं जो अन्दर से कभी टूट के बिखरूं,
वो मुझ को थामने के लिए हाथ बढ़ा देता है।
मैं जो तनहा कभी चुपके से भी रोना चाहूँ,
तो दिल के दरवाज़े की ज़ंजीर हिला देता है।
उस की कुर्बत में है क्या बात न जाने मोहसिन,
एक लम्हे के लिए सदियों को भुला देता है।
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला,
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला।
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक,
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला।
नज़र में ज़ख़्म-ए-तबस्सुम छुपा छुपा के मिला,
खफा तो था वो मगर मुझ से मुस्कुरा के मिला।
वो हमसफ़र कि मेरे तंज़ पे हंसा था बहुत,
सितम ज़रीफ़ मुझे आइना दिखा के मिला।
जिन के आंगन में अमीरी का शजर लगता है,
उन का हर एब भी जमानें को हुनर लगता है।
सारी गलती हम अपनी किस्मत की कैसे निकल दें,
कुछ साथ हमारा तेरी अमीरी ने भी तोडा है।
दिल की दहलीज पर यादों के दिए रखें हैं,
आज तक हम ने ये दरवाजे खुले रखे हैं।
इस कहानी के वो किरदार कहाँ से लाऊं,
वो ही दरिया है वो ही कच्चे घड़े रखे हैं।
दिन की रोशनी ख्वाबों को सजाने में गुजर गई,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गई,
जिस घर मे मेरे नाम की तखती भी नहीं,
सारी उमर उस घर को बनाने में गुजर गई।
फूल इसलिये अच्छे कि खुश्बू का पैगाम देते हैं,
कांटे इसलिये अच्छे कि दामन थाम लेते हैं,
दोस्त इसलिये अच्छे कि वो मुझ पर जान देते हैं,
और दुश्मनों को मैं कैसे खराब कह दूं...
वो ही तो हैं जो महफिल में मेरा नाम लेते हैं।
सरे बाज़ार निकलूं तो आवारगी की तोहमत,
तन्हाई में बैठूं तो इल्जाम-ए-मोहब्बत।
ना शाखों ने पनाह दी,ना हवाओ ने बक्शा,
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता।
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है।
सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर,
परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।
कुछ दर्द कुछ नमी कुछ बातें जुदाई की,
गुजर गया ख्यालों से तेरी याद का मौसम।
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